दुबई में बाढ़.क्या है क्लाउड सीडिंग ?

दुबई में बाढ़ जैसे हालात क्यों बने. आखिर में क्लाउड सीडिंग कैसे होती है. दुबई में आज से 75 साल पहले यानी की 1949 में इतनी बारिश हुई थी.17 अप्रैल को 24 घंटे में दुबई में 160 MM बारिश हो गई. यह इतनी बारिश थी जितनी दुबई में एक से डेढ़ साल के बीच में होती है. एयरपोर्ट से लेकर मेट्रो स्टेशन, बाजार, हाईवे दुबई में चारों तरफ पानी ही पानी था. 24 घंटे तक हजार लोग दुबई एयरपोर्ट पर फंसे रहे दुबई एयरपोर्ट दुनिया का दूसरे नंबर का सबसे ज्यादा व्यस्त एयरपोर्ट है. क्योंकि दुबई में बहुत ज्यादा बारिश नहीं होती इसलिए वहां का ड्रेनेज सिस्टम 1990 के टाइम का है इतनी अधिक बारिश होते ही वहां का ड्रेनेज सिस्टम भी जवाब दे गया. अभी हालात पर दो तरह के तर्क सामने आ रहे हैं. कुछ लोग कह रहे हैं कि यह ग्लोबल वार्मिंग का नतीजा है दूसरी तरफ कुछ लोग यह भी दावा कर रहे हैं कि दुबई ने क्लाउड सीडिंग कराई और जिसमें कुछ लापरवाही हुई जिसकी वजह से दुबई में बाढ़ जैसे हालात हो गई. अगर कुछ मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो दुबई ने 15 और 16 अप्रैल को क्लाउड सीडिंग के लिए साथ 7 एरोप्लेन दो दिन में उड़े. और क्लाउड सीडिंग में गड़बड़ी के कारण ही दुबई में इतनी तेज बारिश हुई कि पूरा दुबई डूब गया. यह बात करते हैं क्या है क्लाउड सीडिंग.

क्लाउड्स सीडिंग की शुरुआत का श्रेय विंसेंट जे शेफ़र को जाते हैं जो जनरल इलेक्ट्रिकल रिसर्च लैब में काम करते थे. 1946 में अमेरिका के न्यूयॉर्क सिटी के पास एक पहाड़ के ऊपर उन्होंने ढाई किलो बर्फ और सिल्वर आयोडाइड को बादलों के ऊपर डालकर वहां पर बारिश करवाई .आप समझिए यह बारिश कैसे करवाई

सभी बादल बारिश नहीं करते कुछ बादलों में इतनी बुंदे नहीं होती कि वह मिलकर बारिश कर सके और कुछ बदल लंबे समय तक टिके नहीं रह पाते कि उनमें बुंदे इकट्ठी हो सके.

क्लाउड सीडिंग में विमान से बादलों में केमिकल छोड़ा जाता है जिसमें सिल्वर आयोडाइज्ड का इस्तेमाल किया जाता है. ऊंचाई से सिल्वर आयोडाइज्ड ड्राई आइस और नमक को बादलों के ऊपर छिड़का जाता है सिल्वर आयोडाइज की संरचना प्राकृतिक वर्क के क्रिस्टल जैसी होती है जब इसे बादलों में डालते हैं तो बादलों की नमी के कारण यह तेजी से बढ़ता है और एक बड़ी बूंद में तब्दील हो जाता है और फिर बाद में उसे जमीन पर गिरते हैं जिसे बारिश कहते हैं. इस तरह से क्लाउड सेटिंग के द्वारा आर्टिफिशियल रेन करवाई जाती है. आजकल दुनिया के कई सारे देश इसका इस्तेमाल करते हैं. हालांकि आर्टिफिशियल रेन और ओरिजिनल बारिश में आप फर्क नहीं बता सकते हैं क्योंकि इसमें पानी का स्वाद और गध में कोई फर्क नहीं होता. हालांकि प्रकृति से छेड़छाड़ कहीं ना कहीं तो नुकसान करती है. https://youtu.be/MTXj8iiWOyw